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देश की दयनीय दशा से लगभग सभी देशवासी भली भांति परिचित हैं। राजनैतिक, प्रशासनिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक, और आध्यात्मिक यानि मानव अस्तित्व के हर परिवेश में हमारा जीवन गिरावट की ओर बड़े तेज प्रवाह से बढ़ता जा रहा है। सच्चाई, सादगी, ईमानदारी, निर्भयता हमारे जीवन में से लुप्त होती जा रही है। उसका स्थान झूठ, विलासिता, हेराफेरी और कायरता ने ले लिया है। इस प्रवाह को रोके बिना हमारी व्यक्तिगत और सार्वजनिक दशा में सुधार आना सम्भव नहीं है। देश के असहाय लोगों को निर्भीक, सच्चे और ईमानदार लोगों की तलाश और जरूरत है।

बुद्धि विलास और वाणी विलास?

बीमारी क्या है हम जानते हैं और यह एक दीर्घ रोग जैसा हो गया है और रोगी की हालत काफी गम्भीर है यह भी हम जानते हैं। लेकिन अंधकार-अंधकार चिल्लाने से क्या अंधेरा दूर हो जाता है? अंधेरा दूर करने के लिए तो प्रकाश करना होता है, अंधेरा स्वयं दूर हो जाता है। इस गरिमापूर्ण धरोहर वाले देश को वापिस उसी शिखर पर पहुँचाने के लिए एक सशक्त प्रयास की आवश्यकता है जिस के लिए एक विशेष प्रकार के व्यक्तियों की दरकार है। गोष्ठियों, बैठकों, भिन्न प्रकार की सोच रखने वाले लोगों में संवाद और पूर्वाग्रहों से ग्रसित लोगों के बीच वाद-विवाद से यह काम होने वाला नहीं है। परिस्थिति इतनी गम्भीर है कि हल्के-फुल्के प्रयास, बुद्धि-विलास और वाणी विलास से बात कदाचित नहीं बनेगी।

हमारा भारत महान

यह ‘सारे जहाँ से अच्छा हिंदास्तां हमारा’ क्यों सारे जहाँ से अच्छा है? यह वाकई सारे जहाँ से अच्छा है क्योंकि इस देश का नृत्य और लोकनृत्य, संगीत और लोगसंगीत, नाट्य कला, शिल्पकला, हस्तकला, चित्रकला, यहाँ की वेशभूषा, उसकी विविधता, यहाँ की अनेक भाषाएँ जिनका अपना-अपना व्याकरण और साहित्य है जिसमें काव्य, गद्य, कहानी, लघुकथा, नाटक, उपन्यास, आदि सभी हैं। यह सब कुछ अपने आप में अद्वितीय है। ऐसी विविधता और उस विविधता का सौंदर्य दुनिया के किसी एक ही देश में नहीं मिलता। यह सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तां हमारा इस लिए भी सारे जहाँ से अच्छा है क्योंकि इतनी कुर्बानी, इतना बलिदान, हंसते-हंसते देश पर, अपने एवं दूसरों के धर्म और अधिकारों की रक्षा करते-करते अपने प्राणों को न्यौछावर कर देने के उदाहरण दुनिया के किसी भी और देश में नहीं मिलते। जितना ग्रहण करके यहाँ के किसान, मजदूर, बढ़ई, बुनकर, शिल्पकार, दस्तकार और अन्य किरती जितना उत्पादन करते हैं इतना ऊँचा अनुपात भी किसी और धरती पर नहीं मिलेगा।

इतना ही नहीं इससे भी बहुमूल्य और लाजवाब बात जो इस देश की है वह है यहाँ से उपजा दर्शन। इस धरती पर पैदा हुए ऋषिओं, मुनियों, गुरुओं, संतों, दार्शनिकों द्वारा प्रतिपादित दर्शन की टक्कर का दर्शन दुनिया के किसी भी और देश में नहीं मिलता। केवल एक सूत्र और उस में निहित विचार का अनुकरण भगवद् साक्षात्कार करवाने की संभावना और क्षमता रखता है। हमारा अभिवादन, नमस्ते, भगवान् के साथ संपर्क और संबन्ध स्थापित करवा सकता है। गीता हो या गुरु ग्रंथ साहिब, वेद हों या उपनिषद्, तर्कशास्त्र हो या अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र हो या समाजशास्त्र, इतना उच्चकोटि का दर्शन और कहीं नहीं मिलेगा। गागर में सागर भरने का कमाल यहाँ के दार्शनिकों ने ही किया है।

लेकिन कहाँ है वह महानता?

फिर यह दुनिया का सबसे अच्छा देश फटे हाल क्यों है? इसकी दुर्दशा क्यों है? कारण स्पष्ट है। जो चीज हमारे पास सब से बहुमूल्य और लाजवाब है यानि हमारा आध्यात्मिक दर्शन हम ने उसे तिलांजली दे दी है। उसे व्यर्थ, बेमानी और दकियानूसी समझ रखा है। आज के तथाकथित आधुनिक युग में पूर्णतया अप्रासंगिक समझ लिया है। वेद के एक छोटे से सूत्र से जीवन जीने की कला सीखने के लिए मार्ग प्रशस्त होता है लेकिन हमारा व्यवहार, हमारी जीवन शैली और हमारी सोच उसके बिलकुल विपरीत हो गई है। वेद ने संदेश दिया ‘इदन्न मम्’ अर्थात यह मेरी नहीं। लेकिन हमारे जीवन में आ गया बिलकुल विपरीत ‘इदम् चापि मम्’ यानी और यह भी मेरा है। उपनिषद् ने संदेश दिया ‘तेन त्यक्तेन भु´जीथा मा गृधाः कस्य स्विद्धनम्’ अर्थात त्यागते हुए भोगो। लालच मत करो। यह धन-सम्पत्ति किस की है? हमारे सद्ग्रंथों ने त्यागपूर्ण जीवन जीने के लिए आहवान किया है। लेकिन हमारा व्यवहार, हमारी जीवन शैली और हमारी सोच है बिलकुल इसके विपरीत। हमने भारतीय विचारधारा और गरिमापूर्ण धरोहर पर आधरित जीवन शैली को छोड़ कर निराधार और खोखले मूल्यों पर आधारित पाश्चात्य जीवन शैली को अपनाना शुरु कर दिया है। यहाँ तक कि अत्यंत सुन्दर अभिवादन ‘‘नमस्ते’’ का स्थान सुप्रभात यानी गुड मौरनिंग ने ले लिया है। पाश्चात्य संस्कृति का अंधा अनुकरण करने वाले लोगों को गाय के गोबर में से दुर्गन्ध आने लगी है।

शायद हमें यह ज्ञात नहीं की पाश्चात्य देशों के लोग पाश्चात्य जीवनशैली के दोषपूर्ण सिद्ध हो जाने के बाद भारतीय खान-पान, शाकाहारी भोजन और बिना रासायनिक खादों के उपयोग द्वारा उपजाए गए खाद्यान्नों और फल-सब्जियों का उपभोग करने लगे हैं। प्राकृतिक सूतों से बने कपड़े पहनने लगे हैं। हमारे आध्यात्मिक दर्शन में उनकी रुचि लगातार बढ़ती जा रही है और बहुत से लोगों ने तो हमारी जीवनशैली भी अपना ली है।

मातृभूमि को आवश्यकता है

इस समय मातृभूमि को आवश्यकता है ऐसे लोगों की जिन्हें न नाम की, न दाम की, न चाम की, न आराम की भूख हो। सरल सी बात है। भूखा व्यक्ति पहले अपनी भूख मिटाएगा, फिर ही तो कुछ करेगा या सोचेगा न? परन्तु नाम, दाम, चाम और आराम की भूख मिटाए नहीं मिटती। आग को जितना ईंधन मिलेगा उसे भस्म करती चली जाएगी और जलती रहने के लिए और ईंधन मांगेगी। नाम की भूख, दाम की भूख, चाम और आराम की भूख भी बढ़ती ही चली जाती है और नाम, दाम, चाम और आराम की भूख का शमन नहीं होता। एक विशेष प्रकार की मानसिकता से ही यह लालसाएं व इच्छाएं मिट सकती हैं।

व्यक्ति और चरित्र

नाम की भूख का अर्थ: प्रशंसा और फूल मालाओं से स्वागत की ललक, आगे होकर किसी पद या ख्याति प्राप्त व्यक्ति के साथ फोटो खिंचवाने की लालसा, एक या अनेक समाचार पत्रों में अपनी फोटो और खबर छपने की प्रबल इच्छा, रेडियो पर अपने नाम का जिक्र या टीवी पर अपना चित्र देखने की चेष्टा, किसी सभा मंच पर स्थान पाने की तथा बोलने के लिए समय पाने की इच्छा, या किसी भी संस्था में पद पाने की आशा इत्यादि। यह एक सूक्ष्म भूख है जिसका संबंध हमारे अहम् भाव से है। अहम् के रहते यह भूख मिट नहीं सकती। इस भूख को मिटाने का एक मात्र उपाय है उस सर्वशक्तिमान प्रभु के समक्ष पूर्ण समर्पण।

दाम की भूख का अर्थ: धन सम्पत्ति, भूमि, भवन, वाहनों-यानों का संग्रह। यह भूख स्थूल है। सिकंदर की मिसाल बहुत उपयुक्त है। सारी दुनिया को जीत उस पर अपना राज्य स्थापित करने की भूख उसकी मृत्यु का कारण बनी। यह भूख संतोष हो जाने पर ही मिटती है, अन्यथा नहीं।

चाम की भूख से अभिप्राय: वस्त्रों, आभूषणों, मेक-अप, बाल रंगने एवम् हेअर-स्टाईल द्वारा शरीर को सजाने की प्रवृत्ति, स्त्री का पुरुष और पुरुष का स्त्री के प्रति आकर्षण और आकर्षित करने के हाव-भाव तथा अपने निकट के और दूर के सम्बंधियों से पक्षपात (भाई-भतीजावाद)। यह भूख अपने इष्ट की आराधना, वंदना और पूजा अर्चना से मिट सकती है। पश्चिमी मनोविज्ञान में इसे सबलीमेशन कहते हैैं।

आराम की भूख का अर्थ: सादगी के विपरीत विलासता का जीवन, खाने का लालच, तरह-तरह के व्यंजनों के लिए लार टपकाना, मादक पदार्थों के सेवन की आदत इत्यादि। किसी आदर्श व्यक्ति के जीवन को अपना आदर्श मान कर तथा उसके पदचिन्हों पर चल कर यह भूख मिटाई जा सकती है।

उज्जवल भविष्य की ओर

यदि ऐसी भौतिक महत्वाकांक्षाओं से रहित लोग इस देश का नेतृत्व संभालने के लिए आगे आएंगे इस देश की बागडोर अपने हाथों में लेने का संकल्प लेंगें तो इस देश का भविष्य उज्जवल होगा। हम शीघ्र ही अपनी खोई हुई गरिमा को फिर से प्राप्त कर सकेंगे और स्वामी विवेकानन्द जी का कथन सत्य सिद्ध होगा। ‘‘जब सिंह के पौरुष से युक्त, परमात्मा के प्रति अटूट निष्ठा से संपन्न और पावित्र्य की भावना से उद्दीप्त नर-नारी, दरिद्रों एवम् उपेक्षितों के प्रति हार्दिक सहानुभूति लेकर देश के एक कोने से दूसरे कोने तक भ्रमण करते हुए मुक्ति का, सामाजिक पुनरुत्थान का, सहयोग और समता का संदेश देंगे’’ तब भारत अपनी खोई हुई गरिमा को फिर से प्राप्त होगा। वोह सुबह जिसका सदियों से इंतजार है उसका उदय होगा। भारत का पुनरुत्थान होगा।

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