माँ:
सन्तान के व्यक्तित्व-निर्माण द्वारा भावी समाज की निर्माता
'नास्तिमातृ समोगुरूः'
माता के समान दूसरा कोई सच्चा गुरू नहीं होता।
राष्ट्र का निर्माण निर्मल माताओं पर निर्भर होता है जो संतानों को समयानुसार यथायोग्य बनाती हैं।
श्रेष्ठ सन्तान के निर्माण हेतु माता का संस्कारित होना अत्यन्त आवश्यक है।
माता के रूप में नारी अम्बा है।
एक बार किसी ने नेपोलियन से पूछा कि आप राष्ट्र को अच्छा कैसे बना सकते हैं ? तब उन्होंने उत्तर दिया था ’तुम मुझे श्रेष्ठ मातायें दो, मैं तुम्हें एक महान राष्ट्र दूँगा। नेपोलियन की माता जब गर्भवती थी, तब नित्य फ़ौजों की कवायद देखने जाती थी, सैनिकों के आवेग पूर्ण गीत सुनती थी, उससे उसके हृदय में वीरता की तरंगे उठती थीं, उसके बाद उन्होंने नेपोलियन जैसे वीरपुत्र को जन्म दिया। इमर्सन ने कहा था ’मनुष्य वही होते हैं जो उनकी माता उन्हें बनाती है।’
श्रेष्ठ माता पिता, सन्तान उत्पत्ति से तीन वर्ष पहले से ही, जैसी सन्तान चाहते हों वैसे ही विचारों में रमे रहें व तन्मय रहें। इस प्रकार श्रेष्ठ मातायें बच्चे के पैदा होने से पहले से ही उसका निर्माण करना शुरू कर देती हैं। माँ के द्वारा गर्भावस्था में दिये गये संस्कार बच्चे के अवचेतन मन में बैठ जाते हैं। अभिमन्यु ने चक्रव्यूह तोड़ने की योजना माँ के गर्भ में ही जान ली थी। अष्टावक्र ने गर्भावस्था में ही वेदान्त सीख लिया था। माता मदालसा जब गर्भवती थी तो वह गाया करती थी ’शुद्धोऽसि, बुद्धोऽसि..‘ऐ मेरे बच्चे, तू शुद्ध है, बुद्ध है, संसार की माया से निर्लिप्त है ‘।इन संस्कारों से उसकी सन्तान ब्रह्मर्षि बनी।
देश का ही नहीं अपितु सम्पूर्ण मानव जाति का कल्याण माताओं द्वारा सुसंस्कृत संतान की उत्पत्ति पर निर्भर करता है।